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Monday, June 29, 2020

हिंदी भाषा नहीं भावना है।


"हिंदी भाषा नहीं भावना है।"


हिंदी भाषा की महानता के बारे में कुछ बातें लिखना ऐसा ही है जैसे सागर से बाल्टी भर पानी निकालना। फ़िर भी महानता को व्यक्त है तो भावनाओं के फल को निचोड़कर शब्दों का रस तो बनाना ही होगा ना।
मेरी यह रचना सभी हिंदी प्रेमियों को समर्पित है:

"हिंदी भाषा नहीं भावना है।"

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हिंदी मां के आंचल सी, भाषाओं की जननी है।
हिंदी कवियों की कलम है, लेखकों की लेखनी है।

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हिंदी काव्यों की रग है, साहित्य की धड़कन है।

हिंदी सभ्यता की महक है, संस्कारो का उपवन है।

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हिंदी व्याकरण का झरना है, शब्दों का महासागर है।

हिंदी कहावतों की सरिता है, व्यंग्य का गागर है।

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हिंदी व्यवहारों का माध्यम है, सादगी भरा व्यवहार है।

हिंदी परंपरा का शृंगार है, आधुनिकता से भी प्यार है।

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हिंदी वाणी की शालीनता, अभिव्यक्ति का बहाव है।

शब्द यथावत स्वीकार ले, अन्य भाषाओं से इसे लगाव है।    

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हिंदी प्रेमियों की गोपी है, संस्कृति की वाहक है।

हिंदी रचना की प्रेरणा है, व्यक्तित्व की सहायक है।

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मराठी माँ देवकी है मेरी, हिंदी मेरी यशोदा है।

मराठी ने मुझे जन्म दिया तो हिंदी ने पाला- पोषा है।

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हिंदी हिंदुत्व की पहचान, भारत की शान है।

हिंदी मातृभूमि की कर्मभाषा, तुझे मेरा सत- सत प्रणाम है।

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"कोई भी भाषा महान नहीं होती, उसे महान बनाते हैं इंसान जो महान होते हैं।"
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Tuesday, June 23, 2020

"ऐ जिंदगी...!"

"ऐ जिंदगी...!"



कुछ शिकवे- गीले जिन्दगी से, 
कुछ गुफ्तगू जिन्दगी से।

कुछ लम्हे जिन्दगी के साथ,
मेरी जिंदगी से इकतरफा बात।

***

मेरी जिंदगी मुझे ये बता,
ठुकरा दूं तुझे या प्यार करूं?
सुनूं दरख़्त तेरी इन प्यारी सुबहों की,
या झुंझलाती शामों को रात होता देखूं।

बेपरवाह मुझपर तेरा ज़ुल्मो- सितम
क्या यही है मुझे तेरा काबिल बनाना?
ग़म के समंदरों में मांझी सा बना दिया
कहती खुशियों के मोती चुनूं!

मजा आता होगा ना ऐसे देखकर मुझे
बंद कर तेरा झुटा रहम दिखाना,
लड़खड़ाती तकदीर देकर कहती,
खुद से ही खुद का चरित्र बुनुं!

गले घोंट दिए तमन्नाओं के,
मेरी सटीक अभिलाषा भी तुझको दिखती नाजायज।
मोहब्बतो के मायने ही बदल दिए,
तू ही बता कि कैसे तुझे मै प्यार करूं!

बेरहम, अब मुझको ना सता
दिए दर्द किसी पहाड़ों से
और मरहम किसी कतरे सा।

फरेब है तेरा मुझसे लगाव
बता इन नफरतों के आगोश में
भला कैसे पाऊं तुझमें सुकूं!

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Saturday, June 20, 2020

दृश्य और विचार




दृश्यों को देखकर मन में कई भाव उठते।
कोई दृश्य मन में बस जाता, तो कई दृश्य छूट जाते।

दृश्य और भावनाओं के इस तालमेल से विचार बुनकर दुनिया कल्पनाओं की बनती स्वप्न बनकर।

होती है ये दुनिया सुंदर- रंगीन उसी इंद्रधनुष की तरह जिसके हर एक रंग में होता कुछ ना कुछ संदेश भरा।

टूट जाए यदि कोई स्वप्न भी तो होता केवल जागना।
ना हकीक़त पर कोई प्रभाव, मन से मिलती सांत्वना

स्वप्न और हकीकत में केवल इतना अंतर कि
हर स्वप्न सच होता नही और हकीक़त स्वप्न से बनती नही।

है ये सारा विचारों का खेल,
बनते जिससे विचारों के तालमेल।

कुछ पल हंसते
कुछ पल रोते

है ये जीवन भी एक स्वप्न की तरह
भिन्न -भिन्न भावनाओं से भरा।

जब भी आंख खुल जाती
टूटती हुई आस में भी आशा की किरण नजर आती।


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Tuesday, June 16, 2020

सुखद स्वप्न

"सुखद स्वप्न" 


हो रहा सूर्योदय है,
पंछी चहक रहे चहुं ओर।
उल्हास है जीवन में नया
हर कोई आनंद विभोर।

कलियां मुस्काई बनी फूल है
पुष्प सुगंध है चहुं ओर।
नई उमंग है, नई आशा है।
हर कोई आनंद विभोर।

चल रही पवन पुरवाई है,
ठंडक सी राहत है चहुं ओर।
खुशियों से हर नयन भरे है,
हर कोई आनंद विभोर ।

बहती सरिता कल कल करती
फैलाए शीतल जल चहुं ओर।
है मधुर संगीत प्रकृति में,
हर कोई आनंद विभोर।

आँखे खुली इस सुखद स्वप्न से
जब सुना बाहर का शोर।
फ़िर आया उसी दुनिया में 
कहीं सन्नाटा, कहीं अशांति और कहीं है उदासी घनघोर।

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Saturday, June 13, 2020

"मै निशा हूं"

"मै निशा हूं"


सोचा कि आज कह ही दूं सबकुछ।
निर्दोष हूं, अकेली हूं, प्यारी भी हूं सचमुच।

मेरी तन्हाई को सिर्फ वहीं समझ सकता है-
जिसने आविरक्त प्रेम में अपने को खोया है,
जिम्मेवारियों का बोझ जिसने दिन रात ढोया है,
लक्ष्य को पाने के लिए जो अनवरत रातें नहीं सोया है।

काली कलूठी निशा हूं मैं,
मैंने भी उस चांद से प्यार किया है।
जिसे चांदनियों के एकतरफा प्रेम ने अपना बना लिया है।

चांद ने भी केवल मुझसे ही प्यार किया है
रौनक तो उसकी मुझसे ही है ना,
भला इन चांदनियों ने उसे दिया ही क्या है!

मेरे सघन तम से मैंने मानवों को चकित होते देखा है।
मानवी आकांक्षाओं में, मैंने अक्सर ख़ुद को कलंकित होते देखा है।

खमोशी से भरी,
गुनाहों की गवाह हूं मै।
प्रखर तेज़ सौर प्रकोप से मनावो की परवाह हूं मैं।
भोगी मन, कपटी मस्तिष्क व अभिलाषियों की अस्थिर चाह हूं मैं।

मेरी ही गोद में अनगिनत महान दिनों ने जन्म लिए है।
मेरी ही बाहों में दर्द भरे जीवन ने अंतिम सांस लिए है।

कपटी, लालची, दुष्ट प्रवृत्ति के कारण मुझे कुख्यात किया गया है।
काम इन इंसानों के है बुरे,
मुझे बेवजह बदनाम किया गया है।

मै रात हूं - समय द्वारा दी गई सबसे बड़ी सौगात हूं।
मै रजनी हूं - उषा की जननी हूं।

हां, मै काली कलुठी निशा हूं!

Saturday, June 6, 2020

"बुझ भी गया अगर.."

"बुझ भी गया अगर..."




बुझ भी गया ग़र 
ये अंत नहीं है मेरा।
जल उठूंगा फिर से
मिटा दूंगा सारा अंधेरा।


काट भी दोगे मेरे पर गर
लुंगा ऊंची उड़ान फिर भी।
रोक सके ऐसी कोई दीवार नहीं,
ना ही कोई घेरा।


मेरा घम जलाने की 
करलो कितने ही प्रयत्न निरंतर
किसी मे इतना सामर्थ्य नहीं
कि उजाड़ सके मेरा डेरा।


बंद करादो आंखों को,
बांध दो पैरो को जंजीरों से,
काले कलंकित तम ने क्या 
रोक सका होने से सवेरा?


कह दो विपत्तियों की आंधी से-
बुराइयों की सुनामी से कि आकर दिखाए।
इस मांझी ने भी विकट मौज पर 
लगाया है अपना बसेरा


चाहे बादल छाए या तूफान मंडराए।
फिर भी बढ़ेंगे मेरे कदम
रूकावटो से डर कर थम जाऊ!
कमजोर नहीं है हौसला मेरा।


*इसे मेरी Quora प्रोफ़ाइल पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।


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(यह कविता मेरी पसंदीता मराठी कविता से प्रेरित होकर मैंने लिखी है। शायद आपको पसंद आए। बहुत ही प्रेरणादायक मराठी कविता "विझलो आज जरी मी"जो की कविवर ' सुरेश भट' जी ने रची है। उन्ही से प्रेरित होकर लिखने की नादान कोशिश की है। यह पूर्णरूपेण मराठी कविता का भाषांतर तो नहीं लेकिन शब्दों के अर्थ प्रयोग का उद्देश्य यथावत रखने की छोटी सी कोशिश जरूर की है।) 

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Wednesday, June 3, 2020

फूल और कांटा

"फूल और कांटा"


हो भले पुष्प पौधा बहार का,
स्वभाव देखो भैया फूल और कंटक जनाब का।

हो चाहे पले बढ़े एक ही कुल में,
है लेकिन कितना अंतर कांटे और फूल में!

एक चढ़ता ईश्वर के चरणों पर।
दूजा करता घाव पैरों में चुभ जाए अगर।

तो क्यों इन में इतना अंतर भला?
एक करे घाव पैरों में दूजा ईश्वर पग पर चढ़ा।

ना किया पौधे ने पालन में भेदभाव इन में,
तो क्यों करते भिन्न कार्य यदि परवरिश एक सी है इनमें?

नहीं बनता कोई अपने कुल से महान।
यह है सारा खेल कर्म का जाने सारा जहां।

कर्म ही है पूजा, कर्म है भगवान।
कुल का घमंड ना करो, करो कार्य महान।

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Tuesday, June 2, 2020

"तु आगे बढता चल"

"तू आगे बढ़ता चल "




कर तू हालात से मुकाबला
 चाहे हो कितनी भी बला।
तू आगे बढता चल
 तू आगे बढता चल…

 बांधे सीमा तुझको गर
 रुकना ना कभी भी हारकर।
दौडता चल
 तू आगे बढता चल…

 हाथों को थामकर उनके
 पैरों मे व्यथा हो जिनके।
साथ उनको लेता चल
तू आगे बढता चल…

 जाना है तुझे हद के परे
जहाँ पर्वत हो शीश झुकाएँ खडे।
हवा का झोका बना चल
 तू आगे बढता चल…

 हो कामयाबी के शीखर कदमों तले।
 चाहे हो मुश्किल कितनी भी भले।
दृढ़ तेरा हो निश्चय अटल
 तू आगे बढता चल…

 तु खुशी को नही, खुशी तुझे पाने को तरसे
तु बुंद मांगे पानी की, तुझपर रिमझीम बारीश बरसे।
हर परिस्थिती मे संभल
 तू आगे बढता चल…

 मिले खुदा की रहमत तुझको
मिले खुशी तुझे, चाहे गम कितने ही मिले मुझको।
मुस्कराता रहे हरपल
 तू आगे बढता चल…

 सपनो के जहान मे उसपार
 हो सब तेरा मनचाहा और तु हो वहाँका राजकुमार
अपने मिठे ख्वाब से जहाँ बुनता चल
 तू आगे बढता चल…

हंसराज केरेकार "राजहंस"

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यह रचना हिंदी साहित्य सम्मेलन पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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(TU AAGE BADHTA CHAL)


Kar tu haalaat se mukaabala

chaahe ho kitani bhee bala 

Tu aage badhta chal

Tu aage badhta chal…


baandhe seema tujhako gar

Rukna na kabhee bhee haarkar.

Daudhta chal

Tu aage badhta chal…


Haathon ko thamkar unake

pairon me vyatha ho jinke

sath apne leta chal

Tu aage badhta chal…


Jaana hai tujhe had ke pare

jahaan pahaad ho sheesh jhukaen khade.

hava ka jhoka bana chal

Tu aage badhta chal…


Ho kaamayaabee ke sheekhar kadamon tale.

chaahe mushkil ho ktani bhi bhale

Drurh tera ho nishchay atal

Tu aage badhta chal…


Tu khushee ko nahin, khushee tujhe paane ko tarase

Tu bund maange paanee kee, tujhpar rimajheem baareesh barase.

har paristhitee me sambhal

Tu aage badhta chal…


Mile khuda kee rahamat tujhako

mile khushee tujhe, chaahe gam kitanee hee mile mujheko.

muskaraata rahey harpal

Tu aage badhta chal…


Sapano ke jahaan me uspar

sab ho tera manachaaha aur tu ho vahaan ka rajkumar

apane mithe khwaab se sapno Ka  jahaan bunta chal

Tu aage badhta chal…

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Monday, June 1, 2020

"....वो क्या जाने!"

“…वह क्या जाने!”


पा ही लेंगे अपनी मंज़िल
चल के ज़रा-ज़रा,

संघर्ष करने से जो लडखडाये
‘कामयाबी’ वो क्या जाने….!

हासिल कर लेंगे हर खुशियां
ग़म भुला के ज़रा-ज़रा,

रोने से जिसको फुरसत ना मिले
‘हंसना’ वो क्या जाने…!

कर लेंगे पुरे ख्वाब सच
मेहनत कर ज़रा-ज़रा,

मेहनत से जो कतराये
‘सच्चे ख्वाब’ वो क्या जाने…!

भर देती नन्ही बुंद भी
सागर को ज़रा-ज़रा,

सुविधाओ के मंच पर बसा
‘संघर्ष’ वो क्या जाने…!

मुस्कुराहट के पिछे छिप जाता दर्द
सबको दिखता हरा-भरा,

ना महसुस किया दर्द किसी का
‘गम’ वो क्या जाने….!

हर वो, जो दिखे चमकीला-सुनहरा

नही होता सोना खरा,

दिखावट पे जो इतराए
‘सच्चाई’ वो क्या जाऩे….!

हर दिन मरता किसी भय से
औ’ जीता डरा-डरा,

‘भयंकर’ है दुनिया उसके लिए
‘मस्ती’ वो क्या जाने…!

[वो=वह]
©हंसराज केरेकार ‘राजहंस’
***

"ऐसा लगता है..!"

"ऐसा लगता है..!"


महफ़िल भी सूनी लगती है, ते
कसर लगता है,
ग़म भी खुशी लगती है, 
तेरा असर लगता है।
है लगता हर पल सदियों -सा, 
बरसों -सा बिन तेरे;
तेरा दिल ही मुझे अब 
मेरा घर लगता है।
है चाहता ये दिल ह
पल तेरे दीदार को
तड़पता हूँ, बेचैन रहता हूँ
मामुली सा पत्थर भी संगेमरमर लगता है।
अनजाना-सा दुनिया की बातों से
दिन-पल और रातों से,
ना किसी के कहने का असर
ना वाकिफ़ हालातों से।
हद पार कर जाऊँगा तेरे इश्क़ में
दोगे ज़हर इम्तेहान के लिए
तो भी पी जाऊँगा तुझे याद करके
मरूँगा नहीं, हो जाऊँगा अमर लगता हैं ।
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Mehfeel bhi sooni lagti Hai
Tera kasar lagta Hai,
Gam bhi Khushi lagti Hai
Tera asar lagta Hai.
Hai lagta har Pal
Sadiyo sa, Barson sa bin Tere,
Tera Dil hi mujhe
Ab Mera Ghar lagta Hai.
Hai chahta ye Dil
Har Pal Tere Didar ko
Tadpta hu, bechain rehta hoon
Mamuli sa Patthar bhi Sangemarmar lagta Hai.
Anjaana sa Duniya ki baatoon se
Din-Pal aur Raaton se
Na kisi ke kahne ka asar
Na waqif halato se,
Had par Kar jaunga Tere Ishq mein
Doge Jaher Imtehaan ke liye
To bhi pee jaunga tujhe yaad karke
Marunga nahi, ho jaunga Amar lagta Hai.

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