"ऐ जिंदगी...!"
कुछ शिकवे- गीले जिन्दगी से,
कुछ गुफ्तगू जिन्दगी से।
कुछ लम्हे जिन्दगी के साथ,
मेरी जिंदगी से इकतरफा बात।
***
मेरी जिंदगी मुझे ये बता,
ठुकरा दूं तुझे या प्यार करूं?
सुनूं दरख़्त तेरी इन प्यारी सुबहों की,
या झुंझलाती शामों को रात होता देखूं।
बेपरवाह मुझपर तेरा ज़ुल्मो- सितम
क्या यही है मुझे तेरा काबिल बनाना?
ग़म के समंदरों में मांझी सा बना दिया
कहती खुशियों के मोती चुनूं!
मजा आता होगा ना ऐसे देखकर मुझे
बंद कर तेरा झुटा रहम दिखाना,
लड़खड़ाती तकदीर देकर कहती,
खुद से ही खुद का चरित्र बुनुं!
गले घोंट दिए तमन्नाओं के,
मेरी सटीक अभिलाषा भी तुझको दिखती नाजायज।
मोहब्बतो के मायने ही बदल दिए,
तू ही बता कि कैसे तुझे मै प्यार करूं!
बेरहम, अब मुझको ना सता
दिए दर्द किसी पहाड़ों से
और मरहम किसी कतरे सा।
फरेब है तेरा मुझसे लगाव
बता इन नफरतों के आगोश में
भला कैसे पाऊं तुझमें सुकूं!
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