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Saturday, July 4, 2020

"आगाज़"

"आगाज़"


है तमन्ना कुछ कर दिखाने की
                         तो फौरन इसका आगाज़ हो,
लग जा भले कर्म को
                        शुरुआत इसकी आज हो।


कर कोई ऐसा कर्म 
                        जिससे हो तेरी जयजयकार
प्रशंसा के मायने ना हो
                        ऐसा तेरा अंदाज़ हो।


है अभिनेता अपनी दुनिया का तू
                        हो जाएगा सारी दुनिया का,
गर्व करे सारी दुनिया तुझपर
                        ऐसा कोई काज हो।


हर कोई कुछ सीखे तुझसे
                        इंसानियत की नई शुरुआत हो।
हो सफल जीवन तेरा 
                        सबको तूझपर नाज़ हो।

***                           ***                         ***


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Monday, June 29, 2020

हिंदी भाषा नहीं भावना है।


"हिंदी भाषा नहीं भावना है।"


हिंदी भाषा की महानता के बारे में कुछ बातें लिखना ऐसा ही है जैसे सागर से बाल्टी भर पानी निकालना। फ़िर भी महानता को व्यक्त है तो भावनाओं के फल को निचोड़कर शब्दों का रस तो बनाना ही होगा ना।
मेरी यह रचना सभी हिंदी प्रेमियों को समर्पित है:

"हिंदी भाषा नहीं भावना है।"

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हिंदी मां के आंचल सी, भाषाओं की जननी है।
हिंदी कवियों की कलम है, लेखकों की लेखनी है।

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हिंदी काव्यों की रग है, साहित्य की धड़कन है।

हिंदी सभ्यता की महक है, संस्कारो का उपवन है।

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हिंदी व्याकरण का झरना है, शब्दों का महासागर है।

हिंदी कहावतों की सरिता है, व्यंग्य का गागर है।

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हिंदी व्यवहारों का माध्यम है, सादगी भरा व्यवहार है।

हिंदी परंपरा का शृंगार है, आधुनिकता से भी प्यार है।

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हिंदी वाणी की शालीनता, अभिव्यक्ति का बहाव है।

शब्द यथावत स्वीकार ले, अन्य भाषाओं से इसे लगाव है।    

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हिंदी प्रेमियों की गोपी है, संस्कृति की वाहक है।

हिंदी रचना की प्रेरणा है, व्यक्तित्व की सहायक है।

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मराठी माँ देवकी है मेरी, हिंदी मेरी यशोदा है।

मराठी ने मुझे जन्म दिया तो हिंदी ने पाला- पोषा है।

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हिंदी हिंदुत्व की पहचान, भारत की शान है।

हिंदी मातृभूमि की कर्मभाषा, तुझे मेरा सत- सत प्रणाम है।

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"कोई भी भाषा महान नहीं होती, उसे महान बनाते हैं इंसान जो महान होते हैं।"
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Saturday, June 6, 2020

"बुझ भी गया अगर.."

"बुझ भी गया अगर..."




बुझ भी गया ग़र 
ये अंत नहीं है मेरा।
जल उठूंगा फिर से
मिटा दूंगा सारा अंधेरा।


काट भी दोगे मेरे पर गर
लुंगा ऊंची उड़ान फिर भी।
रोक सके ऐसी कोई दीवार नहीं,
ना ही कोई घेरा।


मेरा घम जलाने की 
करलो कितने ही प्रयत्न निरंतर
किसी मे इतना सामर्थ्य नहीं
कि उजाड़ सके मेरा डेरा।


बंद करादो आंखों को,
बांध दो पैरो को जंजीरों से,
काले कलंकित तम ने क्या 
रोक सका होने से सवेरा?


कह दो विपत्तियों की आंधी से-
बुराइयों की सुनामी से कि आकर दिखाए।
इस मांझी ने भी विकट मौज पर 
लगाया है अपना बसेरा


चाहे बादल छाए या तूफान मंडराए।
फिर भी बढ़ेंगे मेरे कदम
रूकावटो से डर कर थम जाऊ!
कमजोर नहीं है हौसला मेरा।


*इसे मेरी Quora प्रोफ़ाइल पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।


*****
(यह कविता मेरी पसंदीता मराठी कविता से प्रेरित होकर मैंने लिखी है। शायद आपको पसंद आए। बहुत ही प्रेरणादायक मराठी कविता "विझलो आज जरी मी"जो की कविवर ' सुरेश भट' जी ने रची है। उन्ही से प्रेरित होकर लिखने की नादान कोशिश की है। यह पूर्णरूपेण मराठी कविता का भाषांतर तो नहीं लेकिन शब्दों के अर्थ प्रयोग का उद्देश्य यथावत रखने की छोटी सी कोशिश जरूर की है।) 

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Photo Courtesy: Hanskcreation (My Photo Gallery)

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Tuesday, June 2, 2020

"तु आगे बढता चल"

"तू आगे बढ़ता चल "




कर तू हालात से मुकाबला
 चाहे हो कितनी भी बला।
तू आगे बढता चल
 तू आगे बढता चल…

 बांधे सीमा तुझको गर
 रुकना ना कभी भी हारकर।
दौडता चल
 तू आगे बढता चल…

 हाथों को थामकर उनके
 पैरों मे व्यथा हो जिनके।
साथ उनको लेता चल
तू आगे बढता चल…

 जाना है तुझे हद के परे
जहाँ पर्वत हो शीश झुकाएँ खडे।
हवा का झोका बना चल
 तू आगे बढता चल…

 हो कामयाबी के शीखर कदमों तले।
 चाहे हो मुश्किल कितनी भी भले।
दृढ़ तेरा हो निश्चय अटल
 तू आगे बढता चल…

 तु खुशी को नही, खुशी तुझे पाने को तरसे
तु बुंद मांगे पानी की, तुझपर रिमझीम बारीश बरसे।
हर परिस्थिती मे संभल
 तू आगे बढता चल…

 मिले खुदा की रहमत तुझको
मिले खुशी तुझे, चाहे गम कितने ही मिले मुझको।
मुस्कराता रहे हरपल
 तू आगे बढता चल…

 सपनो के जहान मे उसपार
 हो सब तेरा मनचाहा और तु हो वहाँका राजकुमार
अपने मिठे ख्वाब से जहाँ बुनता चल
 तू आगे बढता चल…

हंसराज केरेकार "राजहंस"

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यह रचना हिंदी साहित्य सम्मेलन पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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(TU AAGE BADHTA CHAL)


Kar tu haalaat se mukaabala

chaahe ho kitani bhee bala 

Tu aage badhta chal

Tu aage badhta chal…


baandhe seema tujhako gar

Rukna na kabhee bhee haarkar.

Daudhta chal

Tu aage badhta chal…


Haathon ko thamkar unake

pairon me vyatha ho jinke

sath apne leta chal

Tu aage badhta chal…


Jaana hai tujhe had ke pare

jahaan pahaad ho sheesh jhukaen khade.

hava ka jhoka bana chal

Tu aage badhta chal…


Ho kaamayaabee ke sheekhar kadamon tale.

chaahe mushkil ho ktani bhi bhale

Drurh tera ho nishchay atal

Tu aage badhta chal…


Tu khushee ko nahin, khushee tujhe paane ko tarase

Tu bund maange paanee kee, tujhpar rimajheem baareesh barase.

har paristhitee me sambhal

Tu aage badhta chal…


Mile khuda kee rahamat tujhako

mile khushee tujhe, chaahe gam kitanee hee mile mujheko.

muskaraata rahey harpal

Tu aage badhta chal…


Sapano ke jahaan me uspar

sab ho tera manachaaha aur tu ho vahaan ka rajkumar

apane mithe khwaab se sapno Ka  jahaan bunta chal

Tu aage badhta chal…

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Photo Courtesy :hanskcreation (My Photo Gallery)


Monday, June 1, 2020

"....वो क्या जाने!"

“…वह क्या जाने!”


पा ही लेंगे अपनी मंज़िल
चल के ज़रा-ज़रा,

संघर्ष करने से जो लडखडाये
‘कामयाबी’ वो क्या जाने….!

हासिल कर लेंगे हर खुशियां
ग़म भुला के ज़रा-ज़रा,

रोने से जिसको फुरसत ना मिले
‘हंसना’ वो क्या जाने…!

कर लेंगे पुरे ख्वाब सच
मेहनत कर ज़रा-ज़रा,

मेहनत से जो कतराये
‘सच्चे ख्वाब’ वो क्या जाने…!

भर देती नन्ही बुंद भी
सागर को ज़रा-ज़रा,

सुविधाओ के मंच पर बसा
‘संघर्ष’ वो क्या जाने…!

मुस्कुराहट के पिछे छिप जाता दर्द
सबको दिखता हरा-भरा,

ना महसुस किया दर्द किसी का
‘गम’ वो क्या जाने….!

हर वो, जो दिखे चमकीला-सुनहरा

नही होता सोना खरा,

दिखावट पे जो इतराए
‘सच्चाई’ वो क्या जाऩे….!

हर दिन मरता किसी भय से
औ’ जीता डरा-डरा,

‘भयंकर’ है दुनिया उसके लिए
‘मस्ती’ वो क्या जाने…!

[वो=वह]
©हंसराज केरेकार ‘राजहंस’
***