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Thursday, July 30, 2020

मित्र- एक सच्चा रिश्तेदार

"मित्र- एक सच्चा रिश्तेदार"


Friendship poetry




मित्र,


करतूतों की डायरी है,

जिंदगी की सबसे खूबसूरत शायरी है।

हर सही- गलत में भागीदार है,

एक सच्चा रिश्तेदार है।

:)

कभी पापा सा बर्ताव है,

कभी मम्मी सा दुलार है।

बड़े भाई की डांट है,

छोटी बहन का प्यार है,

एक सच्चा रिश्तेदार है।

:)

प्यारी सी लत* है,

हर किसी की जरूरत है।

समस्याओं का पौधा है,

समाधान का वृक्ष छायादार है।

एक सच्चा रिश्तेदार है।

:)

धुंधला प्रतिबिंब है दर्पण में,

साथ होता है हर ग़म में।

रब का दिया नायाब उपहार है,

एक सच्चा रिश्तेदार है।

" International friendshipday"


***

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Hansraj Kerekar

Saturday, July 4, 2020

"आगाज़"

"आगाज़"


है तमन्ना कुछ कर दिखाने की
                         तो फौरन इसका आगाज़ हो,
लग जा भले कर्म को
                        शुरुआत इसकी आज हो।


कर कोई ऐसा कर्म 
                        जिससे हो तेरी जयजयकार
प्रशंसा के मायने ना हो
                        ऐसा तेरा अंदाज़ हो।


है अभिनेता अपनी दुनिया का तू
                        हो जाएगा सारी दुनिया का,
गर्व करे सारी दुनिया तुझपर
                        ऐसा कोई काज हो।


हर कोई कुछ सीखे तुझसे
                        इंसानियत की नई शुरुआत हो।
हो सफल जीवन तेरा 
                        सबको तूझपर नाज़ हो।

***                           ***                         ***


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Friday, July 3, 2020

हंस तेरा इतज़ार बस...!

हंस तेरा इतज़ार बस..!


(Picture Credit: YourQuote Presentation)


(चित्र वर्णन)

सडके बेरुखी सी थी,
सुनसान गलियारा था।
निशा की आगोश थी,
रोशनी का सहारा था।

हल्की बूंदाबांदी से,
सरकता आंचल ज़ालिम आंधी से।
अनजान सी नफरतों के आलम में
लगता इश्क़ का मारा था!

उसमे बड़ी कशिश थी।
वो चेहरा बड़ा प्यारा था!
आंखो में इंतज़ार था,
बेकरारी अजीब थी।

पलकों की एकटक,
उंगलियों की आपसी बातें ,
होंठो का सुखना,
बेताबी वाजिब थी।

सिले सूखे ओंठ,
दिमाग में संकोच नाजायज।
दिल में बेसब्री
इश्क़ में सबकुछ जायज़;

मानों हद से गुजरना भी गवारा था।
हां, खड़ा वो शख्स इश्क़ का मारा था!

यार का दीदार, बस!
बाहों का हार, बस!
जिस्म से रूह तक
मिलन के आसार, बस!

' हंस ' तेरा इंतजार! बस!

****

Wednesday, July 1, 2020

चित्र- चरित्र

चित्र- चरित्र


कहा जाता है कि अलग- अलग रंगों की छटाओं में अलग- अलग भाव छिपे हुए होते हैं। इन्हीं रंगों के भाव हमारी आंखो के परदे से छनकर मन और मस्तिष्क में घर कर जाते हैं एक अविलग भावना का रूप धारण करके। कोई निश्चित समय के लिए होता है और कोई क्षणिक। 

चित्र किसी कलाकार के तूलिका से उतरकर स्वेत पटल पर उकेरा जाए तो भी वह भाव और भावना का मिश्रण ही तो है। चूंकि कागज़ पर आने से पहले वह एक चलचित्र ही होता है जो कलाकार (चित्रकार) के मस्तिष्क के तारों और मन के विभिन्न भावना रूपी रंगों के तालमेल से लहराते कलाइयों और ठुमकते अंगुलियों का समर्पण है अपने स्वामी के प्रति, उसके उमड़ते भाव के प्रति।

यंत्र निर्मित! यंत्र तो अबोल है, वो भी स्वयं अपने स्वामी के प्रति आज्ञाकारी होने का केवल कर्तव्य मात्र निभाता है, सदैव अबोध बालक की तरह! भाव व भावनाएं तो मानवी मन की अभिलाषाओं और मानवी मस्तिष्क की आकांक्षाओं का परिणाम है जो यंत्र के माध्यम से सदैव अपने पास संजोकर रखना चाहता है।

चित्र तो निश्चल होता है परंतु मन गतिशील।
भावना शब्दरूपी नहीं होती और न ही मानवी शब्दों की सीमाओं से परे। भले ही व्याख्या नहीं होती लेकिन हजारों शब्द प्रयोग और वर्णन से भी किसी भाव और भावना को व्यक्त होने में कोई रुकावट भी तो नहीं। सबसे सरल और सहज अभिव्यक्ति होती है कोई चित्र। हाव भाव से चरित्र वर्णन या दृश्यों का चित्र वर्णन।

हजारों शब्दों को भावना का रूप देकर किसी चित्र में परिवर्तित कर दिया तो चित्र भी एक जीवंत भावना का चित्रण करती हैं अपने विभिन्न रंगों- भावों के माध्यम से। ठीक यही क्रम आगे बढ़कर किसी दर्शक के नयन पटल से सीधे उसके मस्तिष्क में अपनी जगह बना लेते है और फ़िर मन के रास्ते अन्तःकरण तक कोई तार छेड़ जाते है। और यहीं तार शब्द रूपी भावना बनकर उजागर होते हैं स्वर के माध्यम से, जो ध्वनि रूप में साकार होकर एक वातावरण तैयार करते हैं विलक्षण सौन्दर्य का, अद्भुत अनुभव का।
कोई चित्र किसी कवि के कलम से हजारों शब्द के रूप में अपनी छवि छोड़ता है तो किसी शायर के लेखनी से उनके चाहने वालों तक।

कभी कोई लेखक उसपर पूरा उपन्यास भी लिख देते हैं और कोई पाठक उसपर टिप्पणियों की बौछार कर देता है।

चित्र सिर्फ चित्र होता है, भले एक ही हों। मात्र दर्शक जीतने उतने मन और जीतने मन उतने ही भाव और यही अपना योगदान देते हैं शब्द रूपी भावना को व्यक्त करते हुए, किसी चित्र के उसके असल रूप से परे उसके अस्तित्व को साकार करने में।

चित्र चांद का हो या सूरज का, आकाश का हो या जमीं का।
जिस प्रकार दर्शकों में उन्हें देखकर विभिन्न भावना जन्म लेती हैं, शब्दों की अभिव्यक्ति एक बहाव लेकर आता है। कोई प्रशंसाओं के खेत हरे भरे कर देते है तो कोई बुराइयों के समंदर लांघ जाते हैं।

यह सब तो व्यक्तिगत अनुभव और विचार पर निर्भर करता है कि वो क्या सोचते हैं। लेकिन यह सत्य है कि चित्र शब्दों का सागर होता है। किसी को मीठे पानी का झरना लगता है तो किसी को खारे पानी की झील। ठीक वैसे ही जैसे किसी को चांद की खूबसूरती नजर आती हैं तो किसी को उसमे दाग़ दिखाई देते हैं।


भले ही आप किसी चित्र को कैनवास में कैद करों या किसी यंत्र (कैमरे) में लेकिन मन तो उन्मुक्त पंछी सा होता है उसे भला कोई कैद कर पाया है। भावना रूपी बांध से पानी रूपी शब्द को कैसे रोक पायेगा कोई! चित्र प्रभाव छोड़ जाते है सीधा मन- मस्तिष्क पर।

दृश्यों को देखकर मन में कई भाव उठते।कोई दृश्य मन में बस जाता, तो कई दृश्य छूट जाते।
दृश्य और भावनाओं के इस तालमेल से विचार बुनकर दुनिया कल्पनाओं की बनती स्वप्न बनकर।
होती है ये दुनिया सुंदर- रंगीन उसी इंद्रधनुष की तरह जिसके हर एक रंग में होता कुछ ना कुछ संदेश भरा।

(To be continue...)