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Friday, July 3, 2020

हंस तेरा इतज़ार बस...!

हंस तेरा इतज़ार बस..!


(Picture Credit: YourQuote Presentation)


(चित्र वर्णन)

सडके बेरुखी सी थी,
सुनसान गलियारा था।
निशा की आगोश थी,
रोशनी का सहारा था।

हल्की बूंदाबांदी से,
सरकता आंचल ज़ालिम आंधी से।
अनजान सी नफरतों के आलम में
लगता इश्क़ का मारा था!

उसमे बड़ी कशिश थी।
वो चेहरा बड़ा प्यारा था!
आंखो में इंतज़ार था,
बेकरारी अजीब थी।

पलकों की एकटक,
उंगलियों की आपसी बातें ,
होंठो का सुखना,
बेताबी वाजिब थी।

सिले सूखे ओंठ,
दिमाग में संकोच नाजायज।
दिल में बेसब्री
इश्क़ में सबकुछ जायज़;

मानों हद से गुजरना भी गवारा था।
हां, खड़ा वो शख्स इश्क़ का मारा था!

यार का दीदार, बस!
बाहों का हार, बस!
जिस्म से रूह तक
मिलन के आसार, बस!

' हंस ' तेरा इंतजार! बस!

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